1 Part
243 times read
7 Liked
दुनिया का घाव! दुनिया का घाव सुखाने चला हूँ, बुझता चराग मैं जलाने चला हूँ। बच्चों के जैसा शहर क्यों हँसें न, कोई मिसाइल जमीं पे फटे न। आँखों में आँसू ...